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आज अगहन वदी दोज 17 नवम्बर 2024 को : मूकमाटी रचयिता आचार्य श्री विद्यासागर मुमिराज के 53 वें आचार्य पदारोहण दिवस पर विशेष लेख – निर्यापक प्रसाद सागर जी महाराज

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(विश्व परिवार)। विश्व को भारत ने ही गुरू शिष्य परम्परा से अवगत कराया है और अचारात्मक नैतिक मूल्यों की अजस्त्रधारा प्रवाहित की है। उसी परम्परा को निर्वाह मूकमाटी रचयिता बाल ब्राम्हचारी आचार्य श्री ने किया उनकी शिष्य परम्परा समुदाय में 350 पिच्छिधारी
साधु- साध्वी, 500 ब्रम्हचारी भाई व लगभग 800 ब्रम्हचारिणी बहिनें व हजारों प्रतिमाधारी श्रावक श्राविका रहें हैं। भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत श्रमण साँकृति के प्रजासम्पन्न मूकमाटी रचयिता दुनिया के संत समाज रहे है। तीर्थकर महावीर के संदेश जिओ और जीने दो को भारत के कोने कोने में फैलाने हेतु भागीरथी प्रयास करने वाले तपस्वी सम्राट का नाम रहा हैं मूकमाटी रचयिता। आचार्यश्री।
ध्यान योगी महामनीषी, आध्यात्मिक व राष्ट्रहित चिंतक सर्वोदयी सँत, स्वावलंबी जीवन जीने वाले युगपुरुष विराट व्यक्तित्व के धनी महामनस्वी साहित्य शिल्पी रहे मूकमाटी रचयिता। उन्होंने अपनी चिंतन साधना से प्रसूत यह महाकाव्य लिखकर अपने भाव चेतना को अंतर का ह्दय का स्पंदन बनाकर जगत को उसका परिचय करा दिया। उन्होंने आपकी कथनी व करनी में एक्य स्थापित कर समूची मानव समाज को अपने आंतरिक विचारों से परिमार्जित किया । मूकमाटी रचयिता शब्दो के ऐसे जादूगर रहे जो शब्द अभिव्यक्ति और संप्रेक्षण के मनमोहक परिधान से नए अर्थ प्रदान करते रहे।
अनुशासन व अनुकम्पा की जीवंत मूर्ती रहे मूकमाटी रचयिता जिन्होंने हिन्दी व संस्कृत भाषा साहित्य के अनेक शतक, कविता संग्रह, प्राचीन आचार्य, प्रणीत ग्रंथ, अनुवाद एवं 675 हाईकू (जापानी छन्द) रचना की एवं प्राकृत अपग्रंथ आदि बहुभाषाओं के संरक्षण की वैचारिक क्रंान्ति पैदा करने का महौल व वातावरण निर्मित किया मूकमाटी रचयिता ने ।
जिनके आशीष से जानलेवा बीमारियों से ग्रसित सैकड़ो लोगों का रोगमुक्त होना, हजारों लोगो की परेशानी से छुटकारा पाना सैकड़ों साधकों द्वारा मार्गदर्शन दिशानिर्देश प्राप्त कर समाधि सल्लेखना धारण करना यह सब मूकमाटी रचयिता की कृपा का प्रतिफल रहा है। हजारों शिष्य, लाखो अनुयायी करोड़ो श्रदालु उस महान आत्मा को, सिद्धत्व पाने के लिए श्रीराम, श्री हनुमान, श्री महावीर, श्रीकुंदकुंद जैसे सुबह शाम भजते रहे हैं जिनकी कालजयी रचना मूकमाटी पर 283 समालोचना सहित 4 डी लिट, 50 पी. एच डी व अनेक प्रकार के शोध प्रबंध हो चुके हैं।
पूज्य गुरूदेव के दर्शनार्थ अनेक व्यक्तित्व महामहिम राष्ट्रपति महोदय, माननीय प्रधानमंत्री महोदय, राज्यपाल महोदय, राजदूत कानूनविद, शिक्षाविद, धर्माचार्य, कुलपति, जिलाधीश, आई. जी. न्यायाधीश साहित्यकार चिकित्सक व प्रशानिक अधिकारी आदि श्री चरणों में आकर उनके देश समाज व विश्व शांति के उन्नयन में दिशा निर्देश प्राप्त करते रहे है। प्राचीन भारतीय स्वर्णिम इतिहास के प्रति जनता में जागरूकता, स्वाभिमान जागृत करने एवं भारतीय शिक्षा के मूल तत्व को पुनस्थापित हेतु कन्या आवासीय विद्यालय प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ, महाविद्यालयीन प्रतिभा की स्थापना राष्ट्रभाषा हिन्दी, शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी (इंग्लिश) नहीं मातृभाषा हो, इंडिया नहीं भारत बोलो एवं राष्ट्र सहित योग्य व्यक्ति के चुनाव हो शत प्रतिशत मतदान हो जैसे विचारों को अवगत व क्रियान्वयन किया मूकमाटी रचयिता ने पीडि़त मानव सेवा के लिए भाग्योदय तीर्थ अस्पताल सागर शांतिनाथ विद्यासागर आरोग्य केन्द्र बहोरीबंद एवं पूर्णायु आयुर्वेद अस्पताल व महाविद्यालय जबलपुर की स्थापना हुई मूकमाटी रचयिता के आशीर्वाद
से उन्होने प्राचीन शिल्प कला, स्थापना कला व मूर्तीकला को जीवित रखने के लिए नए पाषण युक्त मंदिर निर्माण जैसे कुंडलपुर, अमरकंटक, वीना वारहा नेमावार, डोंगरगढ़ आदि एवं प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धार के लिए प्रेरणा दी तीर्थ हमारे प्राण है पूर्वर्जो की धरोहर है जिन्हें अक्षुण्ण बनाएं रखना हमारा कर्तव्य है इसके उदाहरण पटनागंज पनागर बहोरीबंद रामटेक नैनागिरी देवगढ़़ आदि है।
स्वालंबन स्वरोजगार हेतु श्रमिक व कैदियों जेल वाले के शोषण रोकने हेतु देश में सैकड़ो हथकरघा व भारतीय हस्तशिल्प केन्द्र खुलवाकर अहिंसा का प्रचार प्रसार का बीड़ा उठाया मुकमाटी रचयिता ने गोधन राष्ट्र्र की सबसे बड़ी पूंजी है गौशाला जीवित कारखाने हैं का संदेश देकर जीवदया क्षेत्र में 140 गौशालाएं मै एक लाख से ज्यादा पशुधन संरक्षण व शरण प्राप्त करवाकर भारत में गौस निर्यात बंद हो का आव्हान किया। फलस्वरूप मध्यप्रदेश सरकार ने आचार्य श्री के नाम पर अनेक जीवदया योजना चालू कर व लाखों रूपये के गौसेवक पुरस्कार प्रतिवर्ष वितरित करने का प्रारंभ कर दिए।
मूकमाटी रचयिता की प्रेरणा से लगभग 500 जैन पठाशालाओं द्वारा जैन बालक बालिकाओ का ज्ञान व धार्मिक संस्कार (वर्तमान में आधुनिक पद्धतियों की सम्मलित) प्राप्त कर करके प्रभु पूजा भक्ति आराधना आदि को विधि सिखाई जा रही है। विनय आदि मानवीय गुणों को विकास करने हेतु। शासकीय क्षेत्र के प्रशासन क्षेत्र में सेवाओं में जैसे आईएएस, आईपीएस, पीएससी आदि में स्वच्छ छवि वाले अधिकारियों को तैयार करवाने में पूज्य गुरूदेव का विशेष मार्गदर्शन प्रेरणा रही है।
हानिकारक हिंसक खान – पान पैक बंद फास्टफूड खाद्य सामग्री से दूर रहने के लिए व व्यवस्थित जीवन शैली शाकाहार को अपनाएं जाने के लिए प्रवचनों में समाहित अनेक गूढ रहस्यों का बताकर भारतीय संस्कृति का महत्व बताया । उन्होने जीवन को संयमित रखने, जीवन की सत्यता को पहचाने हेतु पंक से पंकज बनने की शक्ति अर्जित करने के प्रयोग से जग को हतप्रभ कर दिया अंतिम क्षणों में।
ऐसे तपोदीप्त मूकमाटी रचयिता सिंह के समान निस्संग पर्वत के समान अचल, जल के समान निर्मल, चन्द्रमा के समान सौम्य तथा प्रथ्वी के समान क्षमावान रहें । उन्होने अपनी वाणी सदकार्य त्याग व तपस्या से लाखों लोगों के मन जीवन तथा परिवार में शील, सदाचार, श्रद्धा समरसता की प्रतिष्ठा की । ऐसे परम आदर्श संत शिरोमणी के व्यक्तित्व व कृतित्व को नमन नमन नमन।

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