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जब अंत समय आया तो, संकेत किया चलते हैं खुश रहना धर्म के प्यारो, अब हम तो सफर करते हैं… आचार्य श्री गुरुवर विद्यासागर जी महाराज के चरणों में भावभीनी विनयांजलि

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(विश्व परिवार)। जीते हैं शान से व मरते हैं शान से ये वाक्य आजादी के दीवाने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहते थे या वतन की रक्षा करने वाले सेना के नौजवान कहते हैं पर यह विरले ही जानते हैं कि धर्म के रखवाले, अहिंसा के पुजारी संत, महत, आचार्य, मुनिराज आदि जीवन के हर क्षण, हर पल इन पंक्तियों को आत्मसात करते रहते हैं। उसी कड़ी में 21 वीं सदी, जिन संत के नाम से जानी जाती है, मूकमाटी रचयिता आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने यह अदभुत कार्य कर दिखाया। 56 वर्ष तक श्रमण संस्कृति को व अपनी आत्म शक्त्ति को, शान के साथ उन्नति प्रदान की, साथ ही उसी दम खम से, शान से उस मृत्यु महोत्सव, सल्लेखना के क्षणों को सार्थक कर दिखाया।

सन 1975 के आसपास गाँधीवादी विचारक संत आचार्य विनोबाभावे जी जब आचार्य प्रवर के दर्शनार्थ पधारे व उनके अध्यात्मिक चिंतन व संवारा, सल्लेखना के विचारों से अवगत हुए तो उन्होने कहा कि गीता से बढ़कर व जैन दर्शन के सल्लेखना आदि महावीर के सिद्धांत से बढ़‌कर मेरे ऊपर और कोई प्रभाव नहीं पड़ा (गुरुमुख से सुना) समण सुतं (जैन गीता) प्रस्तावना में उल्लेख भी और उसी का परिणाम रहा कि विनोबा जी ने अपने अंतिम समय में, महाराष्ट्र के अपने वर्धा आश्रम में, वह किया जो उन्होने आचार्य श्री से प्रेरणा प्राप्त की थी। पूज्य गुरुदेव ने जब तिल्दा नेवरा (दिसम्बर 2023) पंच कल्याणक के बाद, अपनी काय की स्थिति देखी, स्वयं के अन्तर्ज्ञान में वस्तु स्वरूप दिखा होगा और वापस रायपुर, राजनांदगांव होकर चन्द्रगिरि (डोंगरगढ़) की ओर आ गये। साथ में मुनिश्री चन्द्रप्रभ सागर जी व मुनिश्री निरामय सागर जी जो कि हर पल, हर क्षण हम सभी, साथ में स्थिति, परिस्थिति में नजर रखे रहते थे, वापस चन्द्रगिरि में आकर स्वाध्याय ग्रंव प्रतिक्रमण संवत्रयी पूज्य गुरुमुख से प्रारंभ किया गया। 13 जनवरी 2023 को जब पेट के दाहिने हिस्से में, लीवर के ऊपर सूजन जैसी एक गाँठ उभर आई तब पूज्य गुरुदेव ने मुझे ईशारा किया कि देखो यह क्या है ? हाथ लगाकर देखा, स्थिति को गंभीरता से लिया गया, पता चला गॉल ब्लेडर (पित्ताशय) से पित्त रिलीज नहीं हो रहा है।

भूख में कमी, कमजोरी, अरुचि आदि तो लगातार दिखाई दे रही थी, यह नई समस्या सामने आ गई तब मैने गुरुदेव से कहा, ये रोग मेहमान की तरह है। आये है व चले जायेगे। तब आचार्य श्री ने आध्यात्मिक चिंतन देते हुए कहा कि ये बताओ प्रसाद इन मेहमानों को बुलाने वाला कौन है? हमने, स्वयं ने इन्हें बुलाया है। अपने कर्मों का ही परिणाम है। ऐसे गहन चिंतक के चरणों में हम नतमस्तक हो गये। स्वयं गुरुदेव तभी से और अधिक सतर्क अपने व्रतो के प्रति, हो गये। निरीह वृति व अप्रमत्त दशा को लेकर, हर पल सजग रहे। इतनी वृद्ध अवस्था, रोग की अवस्था, अत्यंत कमजोरी की अवस्या में भी करवट बदलते समय पिच्छी से परिमार्जन का ध्यान रखना, ऐसा इशारा करना। ऐसी चर्या केवल आत्मनिष्ठ, शुद्धोपयोगी महान साधक के द्वारा ही हो सकती है, जो कि उनके उत्कृष्ट तप साधना का परिचायक है। 18 फरवरी को उस महान आत्मा का संदेश तो मैंने यही समझा कि जब अंत समय आया तो, संकेत किया चलते हैं खुश रहना धर्म के प्यारो, अब हम तो सफर करते हैं…
उस महान साधक का सफर, शीघ्र सिद्ध अवस्था पर पूर्ण होगा, प्राप्त होगा ऐसे श्री चरणों में भावभीनी विनयांजलि।
श्रद्धावनत- निर्यापक मुनि प्रसाद सागर जी महाराज

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