जबलपुर(विश्व परिवार)। दसलक्षण पर्व के उपरांत विभिन्न मंदिरों में वात्सल्य का पर्व क्षमा वाणी मनाया जा रहा है जिसके अंतर्गत श्री १००८ चिंतामणि पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर शिवनगर में वर्षायोग कर रहे उपाध्याय श्री १०८ विश्रुत सागर जी महाराज एवं निर्यापक मुनि श्री १०८ प्रसाद सागर जी महाराज के निर्देशन में वार्षिक धारों का कार्यक्रम सा आनंद संपन्न हुआ जिसमें भक्ति से ओत प्रोत भक्तो ने प्रभु का अभिषेक किया एवं पूजन अर्चना करी उपस्थित भक्तो को संबोधन देते हुए वाक्य कुशल साधक मुनि श्री १०८ पद्म सागर जी महाराज ने कहा ” जिनके जीवन में क्षमा अवतरित हो जाती है, वह पूज्य बन जाता है। जरा सोचो तो जो वस्तु तीन लोक में पूज्यता प्रदान करा दे, वह कितनी मौलिक वस्तु होगी, क्षमा हमारी ही वस्तु है, जब क्षमा की अभिव्यक्ति हो जाती है तो उस क्षमा की मूर्ति के सामने हत्यारा भी हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है। उसके नाम की जाप देता है, णमो लोएसव्वसाहूर्ण कहता है।
” दीपक है उसकी लौ है तो धुआँ भी जुड़ा रहता है, वैसे ही संसारी प्राणी के साथ अज्ञान जुड़ा होता है। परंतु इस अज्ञान को हटाकर क्षमा भाव धारण करना ही सबसे बड़ा धर्म है
कार्यक्रम का उपसंहार पूज्य उपाध्याय श्री १०८ विश्रुत सागर जी के प्रवचन के माध्यम से हुआ मुनि श्री ने कहा “ पश्चाताप की घड़ियाँ जीवन में हमेशा नहीं आया करतीं, ये अपने स्वरूप तक ले जाने वाली घड़ियाँ हैं, स्वरूप प्राप्ति का प्रवेश द्वार है।