• मावलिंगी संत आचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज
(विश्व परिवार) । इस संसार में ज्ञानी कौन है और अज्ञानी कौन है इस बात का निर्णय हमे अवश्य कर लेना चाहिए। एक पात्र में दूध रखा है जिसकी दृष्टि पात्र में रखे हुए दूध पर है वह उसकी सुरक्षा करता है वही जानी है, वहीं कोई दूसरा व्यक्ति है जिसकी दृष्टि मात्र पात्र पर है वह पात्र की ही रखना है पात्र में रखे हुए दूध से कोई प्रयोजन नहीं है वही जीव मतानी है। एक मात्र अपनी दृष्टि से ही हम ज्ञानी अथवा डासानी की श्रेणी में आ जाते हैं। जिसकी दृष्टि मूल्यवान वस्तु पर है वही ज्ञानी है और जिसकी दृष्टि मात्र निर्मूल्य वस्तु घर है वही व्यक्ति अज्ञानी कहलाता है। ध्यान रखो। जब तक व्यक्ति की दृष्टि निज शुद्ध चैतन्य भगवान आत्मा पर नहीं है वह मात्र जड़ शरीर को साफ-स्वच्छ रखा करता है आत्मा को जानने का पुरुषाय नहीं करता वही अनानी है। ऐसा माँगालिक उद्बोधन राजधानी दिल्ली के कृष्णानगर स्थित श्री 1008 महावीर जिनालय में उपस्थित श्रद्धालु भक्तों को सम्बोधित करते हुए भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज ने दिया ।
कहा झाचार्य की ने श्रद्धालु श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए धर्म प्रेमी बन्धुओ । आज तक इस जीव ने नहीं किया 1 लौकिक ज्ञान तो व्यक्ति बहुत प्राप्त कर आत्मज्ञान प्राप्त लेता है लेकिन धान रखना, लौकिक ज्ञान से कोई ज्ञानी नहीं कहलाता । पारमार्थिक ज्ञान ही वारितविक ज्ञान है पारमार्थिक ज्ञान से ही व्यक्ति का उद्धार संभव यह जीव अनादि काल से अनेकानेक शरीरों को धारण करता आ रहा है। अज्ञानता के कारण यह जीव हर जन्म में प्राप्त होने वाले शरीरो को ही अपना मानता रहता है। ध्यान रखना, यही इस जीव के अनंत दाखों का कारण बना हुआ है। आप भोजन करते हैं तो यह बतलाओ कि आप थाली को मंदर ग्रहण करते हो या थाली में रखे हुए भोजन को ग्रहण करते हो। थाली तो बाहर ही दूर जाती है। ठीक ऐसे ही जब भी आपको विदाई होगी तब आपके सोध यह शरीर नहीं जाएगा। इसीलिए जो मूलतत्त्व आत्मा है उसे जानकर उसमें ही लीन होने का पुरुषार्थ सतर करते रहना चाहिए !!!