Home छत्तीसगढ़ शौच अर्थात लोभ को त्याग कर संतोष को धारण करें: पंकज भैया

शौच अर्थात लोभ को त्याग कर संतोष को धारण करें: पंकज भैया

128
0
नवापारा राजिम (विश्व परिवार)। नगर के हृदय स्थल सदर रोड में स्थित दिगंबर जैन मंदिर जी में चतुर्थ दिवस शांति धारा स्वर्ण कलश रमेश भविष्य पहाड़िया परिवार को प्राप्त हुआ आज के सौधर्म इंद्र बनकर पूजा अभिषेक विधान एवं आरती करने का सौभाग्य पहाड़िया परिवार को प्राप्त हुआ । द्वितीय शांति धारा अरिहंत जैन परिवार एवं  अवसर प्राप्त हुआ दोपहर में चौंसठ ऋद्धि महामंडल विधान का आयोजन संपन्न हुआ। संध्या 7बजे भव्य आरती लेकर पहाड़िया निवास से बाजे गाजे के साथ मंदिर जी पहुंचे। मंदिर जी में विद्याश्री बालिका मंडल द्वारा बहुत ही मोहक भक्ति नृत्य प्रस्तुत किया गया तत्पश्चात धार्मिक फौजी का गेम रखा गया इसमें  समाज के सभी लोगों की सहभागिता रही। अध्यक्ष किशोर सिंघई एवं सचिव अखिलेश नाहर ने  संयुक्त रूप से जारी प्रेस वार्ता में बताया कि इस वर्ष लोगों में बहुत ही उत्साह  व उमंग नजर आ रहा है सभी सामाजिक जन प्रत्येक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर  हिस्सा ले रहे हैं ।सुबह 6:00 बजे से लेकर  रात्रि 10:00 बजे तक विभिन्न कार्यक्रमों में उत्साह पूर्वक सभी हिस्सा ले रहे हैं। समाज की महिलाओं की इकाई त्रिशला महिला मंडल, ज्ञान ज्योति मंडल, विद्याश्री बालिका मंडल एवं महावीर पाठशाला के बच्चों के द्वारा प्रतिदिन रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है जिसमें छोटे-छोटे बच्चे अपनी शानदार प्रस्तुति देकर लोगों का मन मोह रहे हैं। पार्श्वनाथ  मंदिर अरिहंत कॉलोनी के प्रभारी व दिगंबर जैन पंचायत कमेटी को उपाध्यक्ष सुरित जैन ने बताया कि पार्श्वनाथ मंदिर में भी प्रतिदिन  विविध कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। आज की प्रवचन की श्रृंखला में पंकज भैया जी के  प्रवचन सुनने के लिए सामाजिक जन काफी संख्या में मौजूद रहे। बाल ब्रह्मचारी पंकज भैया जी गणिनी आर्यिका सौभाग्यमती माताजी के संघ से जुड़े हुए हैं। आज की प्रवचन माला में भैया जी ने कहा कि आज उत्तम शौच धर्म का दिन है ,शौच धर्म का अर्थ होता है लोभ, लोभ का त्याग करना परंतु लोभ को छोड़ना अत्यंत दुर्लभ है ,लोभ को छोड़ना हर किसी के बस के बात नहीं ।बड़े-बड़े साधु संत महात्मा  पंडित विद्वान भी लोभ को नहीं छोड़ पाए फिर हमारी क्या औकात है। लोभ छोड़  नहीं सकते पर सीमित  तो कर सकते हैं लोभ की सीमा बांध लेना भी पाप करने का माध्यम बन सकता है।
शौच अर्थात लोभ को त्याग कर संतोष को धारण करो एवं अपने जीवन में पवित्रता एवं सुचिता को धारण करो। लोभ में न पड़कर अपने से छोटे व नीचे वालों को देखकर संतोष रखना चाहिए ना की बड़े और उंचे लोगों को देखकर चिंता में दुखी रहना चाहिए। लोभी व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं रह सकता संतोषी व्यक्ति हर पल, हर क्षण सुखी रह सकता है। आदमी की इच्छा कभी समाप्त नहीं होती जितना भी मिले और और और की चाह  बची रहती है। मनुष्य कमाते कमाते लोभ में पड़कर एक दिन इस दुनिया से विदा ले लेता है। अपने भविष्य की चिंता ना कर बच्चों के भविष्य के लिए जोड़ कर अपनी मति खराब कर लेता है और मरकर वह नरक गति में चला जाता है। वहां विभिन्न प्रकार के दुख तकलीफ होने पर विवश हो जाता है अतः हमें लोभ पाप से बचना चाहिए। कहा भी गया है – लोभ पाप को बाप बखानो। अर्थात लोभ से पाप का बाप  यानी सबसे बड़ा पाप गया है। हमें लोभ से बचना चाहिए ।लोभी की सदैव दुर्दशा ही होती है इसीलिए कहा जाता है कि संतोषी सदा सुखी।
————————

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here